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Dr. Laxmikant Panda

Dr. Laxmikant Panda

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डॉ. लक्ष्मीकांत पण्डा का जन्म -10 नवम्बर 1982 को सरायपाली जिला-महासमुंद (छ.ग.) के ग्राम बिरकोल में हुआ है । आप स्व. पद्मन पण्डा के पौत्र और से.नि. शिक्षक श्री ऋषिराज पण्डा के सुपुत्र हैं । वर्त्तमान में आप विकास विहार कालोनी रायपुर छत्तीसगढ़ में निवासरत है और शहर के प्रतिष्ठित विद्यालय कांगेर वैली अकादमी में हिन्दी-संस्कृत के वरिष्ठ अध्यापक हैं । प्रारंभिक शिक्षा शिक्षा गाँव से होते हुए ब्रह्मचर्य आश्रम गुरुकुल राजिम में संस्कृत प्राच्य पद्धति से आपकी उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी हुई । उच्च शिक्षा पं.रविशंकर शुक्ल वि.वि.रायपुर के अंतर्गत संस्कृत महाविद्यालय से एम.ए.क्लासिक्स ( संस्कृतसाहित्य ) और एम.ए. (हिन्दीसाहित्य) लेकर आपने स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है । इसी विश्वविद्यालय से आपने आचार्य भरत के नाट्यशास्त्र (संस्कृत) पर अपना शोधकार्य किया और 2017 में आपको विद्यावारिधि ( पीएच.डी.) की उपाधि मिली । विभिन्न विषयों पर आपने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों हिस्सा लेकर अपनी प्रस्तुति दी है और आपके शोध आलेख प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं । आप छतीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल और संस्कृत विद्यामंडल छ.ग.शासन में विषय विशेषज्ञ के रूप में अंशकालीन सेवाएँ देते आये हैं । संस्कृत और हिन्दी भाषा के शैक्षणिक विकास और प्रसार आप सक्रिय हैं । आपको संस्कृत भाषा के संवर्धन में निस्वार्थ योगदान हेतु छत्तीसगढ़ शासन द्वारा “ऋषि-श्रृंग-सम्मान” (2017) हिन्दी भाषा-शिक्षण के नवाचार में विशेष योगदान हेतु नई दिल्ली में “शिक्षक-सम्मान” (2024) आपकी श्रेष्ठ हिंदी कविताओं के लिए साहित्य सृजन संस्थान रायपुर द्वारा “श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान” (2024) प्राप्त है । आप नाट्यशास्त्र के अध्येता हैं और स्वयं एक रंगकर्मी भी । आपने हिंदी-संस्कृत के अनेक नाटकों में अभिनय किया है । विशेष रूप बच्चों के नाटक और उनके प्रशिक्षण में आप सक्रिय रहते हैं आपके द्वारा अनेक बाल नाटक / एकांकी / नुक्कड़-नाटक लिखे और निर्देशित किए गए हैं । आप साहित्य के विद्यार्थी होने के साथ-साथ हिंदी-संस्कृत के अध्यापक भी हैं और दोनों भाषाओं में बोलने, पढ़ने, लिखने पर विशेष अधिकार रखते हैं अतः स्वाभाविक रूप से आप कविता,गीत,कहानी और प्रेरक लेखों के प्रस्तौता हैं । नाट्य कला पर आपके द्वारा लिखित/संपादित दो ग्रन्थ पञ्चमो नाट्य वेद: (संस्कृत) और नाट्यप्रकाश (हिंदी) प्रकाशन प्रक्रिया में हैं । विद्यार्थियों हेतु लघु-नाटक,हिंदी/संस्कृत व्याकरण पर लेखन जारी है । आपकी लेखनी में तरुणाई की उमंग, सात्विक का प्रेम, समर्पण, विरह वेदना, ग्राम-समाज का दारुण यथार्थ, देश–प्रेम, नवयुवकों का आह्वान और कुछ नया करने का ज़ज्बा इत्यादि अनेक समसामयिक विषय आडम्बरहीन और सहजता से झलकते हैं । “अल्पविराम” नामक यह काव्य संग्रह डॉ. लक्ष्मीकांत की प्रथम प्रकाशित कृति है ।

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